संग्राम सेनानी, पत्रकार, लेखक, क्रांतिकारी और समाज सुधारक राजा महेन्द्रप्रताप


■ जर्मनी, तुर्की और अफ़ग़ानिस्तान की मदद से 1 दिसम्बर 1915 में काबुल से भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की गई; जिसके राष्ट्रपति राजा महेंन्द्र प्राताप बने; प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्ला भोपाली, गृह मंत्री मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी, युद्ध मंत्री मौलाना बशीर और चंपकराम पिल्लई विदेश मंत्री बने।


■ राजा महेंद्र प्रताप ने ही अटल बिहारी बाजपेयी को 1957 के आम चुनाव में करारी शिकस्त दी थी। चुनावी दस्तावेज़ों को पलटें तो पता चलेगा कि 1957 के लोकसभा चुनावों में मथुरा लोकसभा सीट से राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में लगभग 4 लाख 23 हज़ार 432 वोटर थे। जिसमें 55 फ़ीसदी यानि लगभग 2 लाख 34 हज़ार 190 लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। 55 फ़ीसदी वोट उस वक़्त पड़ना बड़ी बात होती थी।


■ इस चुनाव में जीते निर्दलीय प्रत्याशी राजा महेंद्र प्रताप ने भारतीय जन संघ पार्टी के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी की ज़मानत तक ज़ब्त करा दी थी। क्योंकि नियमानुसार कुल वोटों का 1/6 वोट नहीं मिलने पर ज़मानत राशि ज़ब्त हो जाती है।अटल बिहारी इस चुनाव में 1/6 से भी कम वोट मिले थे।जबकि राजा महेंद्र प्रताप को सर्वाधिक वोट मिले और वह विजयी हुए।


■ राजा साहब ने 1914 में देश छोड़ दिया। अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाई। अंग्रेजों ने राजा साहब को राजद्रोही घोषित कर दिया था। 


■ 32 साल तक विदेश में अंग्रेजों से जंग लड़ने के बाद राजा महेंद्र प्रताप जब 1946 में भारत आए तो देश के हालात ये थे कि देश के बंटवारे की बात चल रही थी। राजा इससे बड़े व्यथित हुए। उन्होंने उस समय के हर क्रांतिकारी व नेता से इसका विरोध जताया, तमाम विरोध के बाद भी देश दो टुकड़ों में बंट गया।


■ उनका विवाह जींद की राजकुमारी से हुआ था।


 ■ राजा महेंद्र प्रताप का शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान रहा। उन्हीने वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की थी और उनका यक़ीन था कि शिक्षा के ज़रिए ही समाज में प्रेम और सद्भाव को स्थापित किया जा सकता है!


■ इनकी तस्वीर लाल क़िला मे बने "आज़ादी के दीवाने" संग्रहालय में लगी है।


■ आजाद हिन्द फौज के गठन में उनकी प्रमुख भूमिका रही।


■ उनके सद्प्रयासों के कारण उन्हें नोबेल पुरस्कार हेतु भी नामित किया गया।


आजादी के पुरोधा को विनम्र श्रद्धांजलि!!

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