*“वाह…यह सुंदर है!”*
_जब मैं कभी वनों में पैदल विचरण करते हुये पहाड़ों के बीच होते सूर्योदय, या कोई शानदार नयनाभिराम दृष्य या अचानक कोई सुडौल पुरुष या महिला सामने आ जाने पर होता है, तो सहसा यह मुख से निकल पड़ता है। कभी कभी तो चीख निकल जाती है और कोई बहुत सुन्दर विचार मन में आता है। लेकिन सुंदरता कहाँ है, सुंदरता की प्रशंसा कहाँ है, सुंदरता को पहचानने की क्षमता कहाँ है? यह हमारी अपनी चेतना के भीतर है!_
_क्योंकि हम कौन हैं और क्या हैं इसका सार सुंदरता ही है। सुंदरता का सार शरीर, चेहरे या पहाड़ या वन में नहीं पाया जाता है - वे केवल हमारी अपनी आत्मा के भीतर सुंदरता के सार को जगाते हैं। और वह सुंदरता केवल कुछ ऐसी चीज नहीं है जिसे हम अपने भीतर चखते हैं, बल्कि यह हमारे चरित्र में गुण के रूप में और हमारे जीवन में देखभाल के रूप में उभरती है। क्योंकि यह गुण और कुछ नही बल्कि हमारे हमारे क्रिया-कलाप में प्रेम का ही रूप है।_
अगली बार जब कभी आप कहें, *“यह सुंदर है!”* तो जान लें कि आप अपने बारे में यह बोल रहे हैं, और यह आप ही हैं जो सुंदर हैं, हमेशा थे, और हमेशा रहेंगे।
_धीरे से लबों पे आया ये सवाल,_
_तू ज्यादा खूबसूरत है या तेरा ख्याल..._
*सच में, आप बहुत सुन्दर हैं!!*
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